Impact of Lockdown: लॉकडाउन की खामोशी में बढ़ गया पक्षियों का कुनबा, सुनाई देंगे अलग अलग सुर :- मार्च से जून तक लागू रहे लाॅकडाउन ने प्रकृति को बहुत कुछ लौटाया। खासतौर पर पर्यावरण में सुधार कर दिया है। पर्यावरण सुधार का असर पक्षियों के प्रजनन पर भी पडा है। सामान्य तौर पर मार्च से लेकर मानसून शुरू होने तक का समय पक्षियों का प्रजनन काल होता है। इस बार पर्यावरण सुधार के सुखद परिणाम मिल रहे हैं। कुछ पक्षियों की बढती संख्या इस ओर संकेत कर रही है कि लाॅकडाउन के दौरान पक्षी अपने परिवार में वृद्धि कर रहे हैं। पर्यावरण सुधार व मनुष्य के हस्तक्षेप की कमी का पडा है असर पक्षी विशेषज्ञ डॉ केपी सिंह ने बताया कि इस बर्ष पक्षियों ने समय रहते प्रजनन की निर्बाध रूप से तैयारी की हैं। लाॅकडाउन के कारण मनुष्य की गतिविधियों पर रोक लगने से पक्षियों को प्रजनन और भोजन के बाधारहित अवसर मिल रहे हैं। घौसलों व पक्षियों के अंडो को नुकसान कम पहुंचा है। इस कारण कई पक्षियों की प्रजातियां अच्छी तादाद में अपनी जनसंख्या वृद्धि कर रही हैं। जल व वायु प्रदूषण में हुए सुधार से पक्षियों की प्रजनन दर में सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। प्रजनन काल में प्रचुर भोजन व घौसलों के लिए सुरक्षित स्थान की उपलब्धता पक्षियों को प्रजनन के लिए आकर्षित करता है। हालांकि 29 मई के तूफान में सैकड़ों पक्षियों की मौत भी हुई थी। आगरा में इन पक्षियों की जनसंख्या वृद्धि की दर दिख रही है अधिक डाॅ केपी सिंह के अनुसार आगरा में कई स्थानों का अवलोकन करने पर यह बात सामने आई है कि इस बर्ष हरा कबूतर, ग्रे होर्नबिल, काॅपर स्मिथ बारबेट, ग्रीन बी ईटर, पर्पल स्वैम्प हैन, मूरहेन, लेसर विशलिंग डक, ब्रोन्ज विंग्ड जैकाना, लिटिल ग्रीव, ब्लैक विंग स्टिल्ट, मैंना, व्हाइट ब्रस्टिड वाटर हेन, आइबिस, हाउस स्पैरो, ब्राउन राॅकचैट, तोता, कबूतर, बुलबुल आदि पक्षियों की संख्या में वृद्धि दिख रही है। फिजेन्ट टेल्ड जेकाना भी प्रजनन कर रहा है आगरा में आगरा शहर इस बार फिजेन्ट टेल्ड जेकाना के परिवार में वृद्धि का गवाह बन रहा है। ताजमहल के निकट जंगल में इसकी उपस्थिति दर्ज की गई है। इसने यहाँ अपने घौसला बनाकर प्रजनन प्रारम्भ कर दिया है। यह जलीय पक्षियों में वैडर श्रेणी में आता है। यह पक्षी तालाबों, दलदली जगहों, पानी भरे खेतों, छोटी झीलों आदि में रहकर प्रजनन करता है। इसका प्रजनन काल जून से सितंबर तक होता है। अन्य पक्षियों की तरह प्रजनन काल मे इसके भी रंग मे परिवर्तन हो जाता है। इसके शरीर के नीचे के हिस्से का रंग काला तथा पूंछ काली लंबी हो जाती है। घोंसले में अंडे सेना व चूजों की देखभाल की जिम्मेदारी नर पक्षी द्वारा निभाई जाती है। इनका घोंसला जलीय वनस्पति पर तैरते हुए घास के ढेर जैसा दिखता है। यह अपना घोंसला जलीय वनस्पति में मौजूद पिस्टिया (Pistia), निम्फाइड्स (Nymphoides), हाइड्रिला (Hydrilla) आदि के पत्तों पर बनाते हैं। मादा एक बार में चार तक अंडे देती है। इस पक्षी का मुख्य भोजन जलीय वनस्पति, जलीय कीट व घोंघा आदि होते हैं। यह पानी के ऊपर तैरने वाली वनस्पति जैसे सिघाड़ा, जलकुंम्भी, कमल, लिली आदि वाली जगहों पर रहते हैं। कम गहरे पानी के अंदर चलते और तैरते भी हैं। पक्षियों में घौसले बनाने की कला होती है अद्भुत डाॅ केपी सिंह के अनुसार घोंसला बनाने की प्रक्रिया पक्षियों के वर्गों के आधार पर होती है। अंडों की सुरक्षा और भोजन की आसानी से उपलब्धता की प्राथमिकता के आधार पक्षी घौसलों का निर्माण करते हैं। बया पक्षी के घोंसलेें बहुत आकर्षक होते हैं । प्रायः विभिन्न पक्षी अपनी प्रजाति के आधार पर निम्न प्रकार से घौसलों का निर्माण करते हैं। 1. पेड़ के खोखले तनों में घोंसला: इन्हें कोटर बोला जाता है। अपने शरीर के आकार के आधार पर पुराने पेड़ो के खोखले तनों में छेद करके अपने घौसले बनाते हैं। ग्रे होर्नबिल, काॅपर स्मिथ बारबेट, ब्राउन हेडेड बारबेट, तोता आदि इसी तरह के घौसलों में अंडे देते हैं। 2. पेड़ की टहनियों और घरों में घोंसला: हरा कबूतर, गौरैया, यूरेशियन डव , स्टार्क, हैरोन , मैंना , कबूतर आदि पक्षी छोटी छोटी लकडियों, घास फूस के तिनकों आदि से जाल बुनकर घौसला बनाते हैं। 3. आद्रभूमि व कम गहरे पानी में घोंसला: अधिकतर जलीय पक्षी कम गहरे पानी, घास युक्त दलदल, व आद्रभूमि में घौसले बनाते हैं। इनमें लेशर विशलिंग डक, ब्लैक विंग स्टिल्ट, पर्पल स्वैम्प हैन, लिटिल ग्रीव, ब्रोन्ज विंग्ड जैकाना, मूर हैन, वाटर हैन आदि पक्षी इसी तरह घौसले बनाते हैं। 4. झाडियों व जमीन में घोंसला: छोटे छोटे आकार के पक्षियों के घौसले झाडियों पर या झाडियों से घिरी जमीन पर बनाते हैं। प्लेन प्रीनिया, ऐशी प्रीनिया, टेलर बर्ड, लार्क , टिटहरी आदि के घौसले 5. नदी, झील, तालाबों के किनारे घोंसला: पानी की उपलब्धता वाली जगह के पास मिट्टी के अंदर सुरंग बनाकर या नदी किनारे बालू में भी कुछ पक्षी अंडे देते हैं जिनमें ग्रीन बी ईटर, रिवर लेपविंग प्रमुख हैं। 6. पुरानी इमारतों, पुलों, खंडहर में घोंसला: स्वैलो जैसे पक्षियों के घौसले मिट्टी को इमारतों की छतों या पुलों के नीचे चिपका कर बनाते हैं।


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